Wednesday, July 7, 2010

भूतवा खुले के चाही-2


गांव के बडे बुर्जुगों की सलाह पर जो दिन निश्चित किया गया उस दिन बम्बईया पंडित जी पूरे परिवार के साथ बरमबाबा के मंदिर में कसम खाने के लिए पहुंच ही गए। बरम बाबा का मंदिर पंडितों के गांव के बाहर एक खुले मैदान में बना हुआ है। मैदान के बायीं ओर यादव रहते हैं और उसी से सटी दलितों की बस्ती है जो रेलवे लाईन के किनारे तक फैली हुई है। कसम खाने वाले दिन पूरा मैदान ठसाठस भरा हुआ था। सभी के मन में उत्सुकता थी कि होगा क्या ? उधर बिहारी जब घर से चले तो उन्हें पूरा विश्‍वास था कि आज उनका पैसा उन्हें मिल जाएगा क्योकि कोई बरम बाबा की झूठी कसम थोडे ही खाएगा। मंदिर के पास पहुंच कर वे अपने बिरादरी के लोगों के साथ जमीन पर बैठ गए।बिहारी के पहुंचने के साथ ही वहां मौजूद लोगों में खुसरफुसुर होने लगी। दलित बिरादरी के ज्यादा लोगों का मानना था कि पंडित ने अवश्य बिहारी के पैसे हडपे होंगे जबकि पिछडे और सवर्णों की मान्यता यह थी कि धरम करम में यकीन रखने वाले पंडित जी ऐसा नहीं कर सकते ‍उनके उपर मिथ्या दोषारोपण किया जा रहा है। जितने मुहं उतनी बातें। आखिर जब पंडित जी ने हाथ में गंगा जल लिया और सबके सामने यह कसम खाई कि बिहारी ने कभी भी कोई पैसा उन्हें रखने के लिये नहीं दिया था, यदि उनकी बात झूठी हो तो बरम बाबा उन्हें दंड दें। बरम बाबा के प्रति जनआस्था और पंडित जी के कसम खाने के बाद गांव समाज के लिए यह मामला खत्म हो गया। सबको यकीन हो गया कि बिहारी ने दोषारोपण किसी के बहकावे में आकर लगाया होगा। महज कसम खाने भर से पंडित जी लोगों की नजर में सच्चे और बिहारी झूठे साबित हो गए। ग्रामीण समाज की यह विडम्बना है कि बिना सच जाने लोग लोक आस्था के आगे सिर नवाते है और उनकी इसी प्रवृत्ति के कारण अक्सर सच हार जाता है। आज भी ग्रामीण इलाकों में इस तरह के नजारे देखने को मिल जाएंगे। रही बात बिहारी व पंडित जी की तो वे अपना-अपना सच जानते थे। पंडित जी धरम करम को मानने वाले थे उन्होंने पाप व पूण्य का हिसाब लगाकर कसम खाई थी। पता नहीं उन्हें बरम बाबा के प्रकोप का डर था कि नहीं लेकिन बिहारी को पक्का यकीन था कि आज नहीं तो कल बरम बाबा पंडित जी पर भूत छोडेंगे क्योंकि उन्होंने उनकी झूठी कसम खाई थी।


समय बीतने के साथ गांव वालों के साथ पंडित जी भी इस वाकये को भूलने लगे लेकिन बिहारी जब भी बरम बाबा के मंदिर के आसपास से गुजरते उनकी नजरें मंदिर की ओर उठ जातीं, मानों गजारिश कर रही हों कि काफी समय बीत गया आखिर पंडित जी को झूठी कसम खाने का दंड कब देंगे। धीरे-धीरे जब कई साल बीत गए तो बिहारी के सब्र का पैमाना छलकने लगा और यह सोच कर परेशान रहने लगे कि आखिर बरम बाबा भूत छोडने में इतनी देर क्यों कर रहे हैं जबकि उनकी दलित बस्तील के एक व्यक्ति ने जब झूठी कसम खाई थी तो एक माह में ही उन्होंने उसकी बकरी पर भूत छोड दिया था जिससे उसकी मौत हो गई थी।