Friday, March 30, 2012

जो तटस्‍थ है समय लिखेगा उनका भी अपराध

दिल्ली समेत दूसरे राज्यों में झारखंड को 'कमीशनखंडÓ के नाम से क्यों जाना जाता है, शुक्रवार को रांची के समीप एक प्रत्याशी के नजदीकी लोगों के पास से करोड़ों की नकदी जब्त होने के प्रकरण ने इसे और पुख्ता कर दिया। इस घटना से उस झारखंड का नाम फिर पूरे देश में दलाली-घूस-रिश्वतखोरी के लिए बदनाम हुआ जहां के 24 में से 22 जिलों में नक्सलियों की समानांतर सत्ता चलती है। आधी से ज्यादा आबादी दो जून की रोटी के लिए मशक्कत करती है। ग्र्रामीण इलाकों में पीने का पानी और बिजली सपने के समान हैं। क्या मिला इन 11 सालों में झारखंड को, शायद बदनामी और जिल्लत के सिवाय कुछ नहीं। राज्यसभा चुनाव को लेकर राज्य मंडी के रूप में मशहूर हुआ। पहले भी कई लोग धन और प्रभाव का प्रयोग कर यहां से चुनकर उच्च सदन में जाते रहे हैं लेकिन इस बार तमाम मर्यादाएं तार-तार हो गई। जिस तरह एक निर्दलीय आए और दो-तीन दिनों में ही अपना सा मुंह लेकर वापस हो गए। बाद में सूटकेस-कार के किस्से, महंगी ऑडी गाड़ी बांटने की अटकलें। कोलकाता में विधायकों की मंडी संजने की खबर झारखंड की दामन में लगा ऐसा दाग है जिसे धोया नहीं जा सकता। देश-दुनिया में हमारी बदनामी हो रही है। भगवान बिरसा की धरती, परमवीर अलबर्ट एक्का की कुर्बानी हमारी विरासत है। झारखंड की धरती रत्नगर्भा है। यहां की खनिज देश-दुनिया में समृद्धि ला रही है लेकिन क्या हम माथे पर बदनामी का दाग लिए घूमते फिरेंगे। राज्यसभा में भी इस पर चिंता जताई गई है। शुक्रवार को उच्च सदन के सदस्यों ने एकमत से झारखंड में थैलीशाहों की राज्यसभा में आने की कवायद का विरोध किया। शर्म की बात है, बड़ा भाई बिहार करवटें ले रहा है और उसी की कोख से जन्मा झारखंड बदनामी की नई ईबारतें दिन-ब-दिन गढ़ता जा रहा है। इस कालिख को पोछकर फेंकना समय की जरूरत है। थैलीशाह उच्च सदन में जाकर क्या करेंगे, झारखंड को कैसा मैसेज देंगे यह समझा जा सकता है। पैसे की लय-ताल पर नाचती झारखंड की राजनीति कहां जाकर रूकेगी, यह मनन का विषय है। क्या हम ऐसे ही जिल्लत की नजरों से देखे जाते रहेंगे? सवाल आपके सामने है। इसका उत्तर भी आपको ही देना होगा। 11 साल में हमारे खाते में बदनामियों के सिवाय कुछ दर्ज नहीं हुआ। क्या इसी के बल पर हमारी राजनीति आगे बढ़ेगी? एक विधायक ने वोट बहिष्कार की घोषणा भारी मन से की। वे नहीं चाहते थे कि पैसा पाने की अंधी दौड़ में अपना जमीर बेच दें। अब फैसला आपकी अदालत में है। सच्चाई भी सामने है। आपके हाथ में भी जब मौका आएगा तो जिन्हें जिताकर भेजा है उनसे यह पूछना मत भूलिएगा कि क्या यही दिन देखने के लिए उन्हें राज्य की सबसे बड़ी पंचायत में भेजा था। याद रखिए फैसला आपको करना है कि क्या इसी लीक पर झारखंड की राजनीति चलेगी। जिन्होंने नोट लेकर अपने वोट बेचे उन्हें पहचानिए नहीं तो समय आपको भी माफ नहीं करेगा। अगली बार चुनाव में ऐसी पटखनी दीजिए कि आने वाले दिनों में नोट लेकर अपना जमीर बेचने के पहले कोई सौ बार सोचे। आपको अपनी भूमिका तय करनी होगी। इस बात की गंभीरता को राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जी की इस कविता से समझा जा सकता है, समर शेष है नहीं पाप का भागी केवल व्याध्र, जो तटस्थ है समय लिखेगा उसका भी अपराध...।