Wednesday, May 23, 2012

भाजपा की हार पर बची सरकार

झारखंड में भाजपानीत गठबंधन सरकार चल रही है लेकिन राज्यसभा चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी एसएस अहलूवालिया ही चुनाव हार गए। इससे अब यह पूरी तरह साफ हो गया है कि सत्ताधारी गठबंधन दल सरकार तो चला रहे हैं पर वे साथ नहीं हैं। जाहिर है गठबंधन मजबूरी का है और उसकी गांठें इतनी कमजोर हैं कि जैसे ही कोई दलीय हित सामने आता है एक-एक कर खुलने लगती हैं। वैसे भाजपा आलाकमान के लिए भले ही अहलूवालिया की हार बड़ा झटका हो लेकिन इस महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाक्रम से राज्य की सत्ता पर काबिज भाजपा नेता राहत की सांस ले सकते हैं कि मुश्किल में फंसी सरकार बच गई। हालांकि यह संकट सिर्फ फौरी तौर पर ही टला है लिहाजा भाजपा को भी यह सोचना होगा कि आखिरकार ऐसी स्थिति आई कैसे? शुरू से ही भाजपा के साथ कदमताल कर रही आजसू के विधायक झामुमो के साथ मजबूती से खड़े हो गए। आजसू के समर्थन से गदगद झामुमो ने एक कदम आगे बढ़कर यहां तक कह दिया कि आने वाले दिनों में हटिया विधानसभा चुनाव तो क्या, अब दोनों दल मिलकर अपने गठबंधन का पूरे राज्य में विस्तार करेंगे। तस्वीर साफ है, यानी दोनों दल एक साथ मिलकर चुनाव मैदान में उतर सकते हैं। यह राजनीतिक साझेदारी कही न कही भाजपा को ही देरसवेर नुकसान पहुंचाएगी। भाजपा के पास जीत के पर्याप्त आंकड़े नहीं थे। हाईकमान को इस बात की आशा थी कि पार्टी के प्रबंधक जीत के लिए आवश्यक वोट जुटा लेंगे लेकिन दल के रणनीतिकार इसमें असफल रहे। वैसे देख जाए तो अगर परिणाम उल्टा होता यानी भाजपा जीत जाती और झामुमो को हार का सामना करना पड़ता तो झारखंड की भाजपा सरकार पर संकट तय था। वैसे भी राजनीतिक अस्थिरता झारखंड की नियति रही है। शासन तंत्र का ज्यादा वक्त सत्ता को बरकरार रखने में जाया होता है।


वैसे राज्यसभा चुनाव के कारण झामुमो व भाजपा में खटास पैदा हुई है। लेकिन भाजपा के लिए यह आत्मचिंतन का विषय होगा कि आजसू ने किन वजहों से झामुमो को समर्थन किया, भाजपा के चुनाव प्रबंधक क्यों तीन-चार अतिरिक्त मतों का जुगाड़ नहीं कर पाए? सरकार को समर्थन दे रहे दो निर्दलीय विधायकों ने किस स्थिति में कांग्र्रेस के प्रत्याशी को समर्थन दिया। राज्यसभा चुनाव झारखंड की मुंडा सरकार का लिटमस टेस्ट था। आगे हटिया में भी विधानसभा उपचुनाव होना है। हटिया की पृष्ठभूमि भी कुछ ऐसी ही है। अगर भाजपानीत गठबंधन सरकार के घटक दल संभलकर नहीं चले तो सरकार मुश्किल में पड़ेगी। राज्यसभा चुनाव में हार से भाजपा को सबक लेने की जरूरत है। सबक यह है कि संभलकर और तालमेल बनाकर नहीं चले तो विपक्ष भविष्य में और हावी होगा, जिसका असर आखिरकार सरकार पर ही पडऩे वाला है।

बहरहाल कांग्रेस ने झाविमो विधायकों के मतदान न करने के बावजूद जिस तरह से निर्दलीय विधायकों को अपने पाले में साधा कर राज्य सभा की यह सीट जीती हैै उससे साबित हो जाता है कि मौका आने पर वह सत्ता के लिए भी जोड़तोड़ में पीछे नहीं रहेगी।

Tuesday, May 8, 2012

जहां हिन्दू अल्पसंख्यक, वहां अत्याचार

सर्वधर्म समभाव और वसुधैव कुटुंबकम् को जीवन का आधार मानने वाले हिन्दुओं की स्थिति उन देशों में काफी बदतर है जहां वे अल्पसंख्यक हैं। भारत से बाहर रह रहे हिन्दुओं की आबादी लगभग 20 करोड़ है जिसमें सबसे ज्यादा खराब स्थिति दक्षिण एशिया के देशों में रह रहे हिन्दुओं की है।  बांग्लादेश, भूटान, फिजी, मलेशिया, पाकिस्तान, श्रीलंका और त्रिनिदाद-टौबेगो में हाल के वर्षों में हिन्दू अल्पसंख्यकों के खिलाफ अत्याचार के मामले बढ़े हैं। इसमें जबरन धर्मान्तरण, यौन उत्पीडऩ, धार्मिक स्थलों पर आक्रमण, सामाजिक भेदभाव, संपत्ति हड़पना आदि शामिल है। इसमें कुछ देशों में राजनीतिक स्तर पर भी हिन्दुओं के साथ भेदभाव की शिकायतें सामने आई है। हिन्दू अमेरिकन फाउंडेशन की आठवीं वार्षिक मानवाधिकार रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है। यह रिपोर्ट 2011 की है जिसे हाल ही में जारी किया गया है।

रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान में 1947 में कुल आबादी का 25 प्रतिशत हिन्दू थे। अभी इनकी जनसंख्या कुल आबादी का मात्र 1.6 प्रतिशत रह गई है। गैर-मुस्लिमों के साथ यहां दोयम दर्जे का व्यवहार हो रहा है। 24 मार्च 2005 को पाकिस्तान में नए पासपोर्ट में धर्म की पहचान को अनिवार्य कर दिया गया। स्कूलों में इस्लाम की शिक्षा दी जाती है। गैर-मुस्लिम खासकर हिन्दुओं के साथ असहिष्णु व्यवहार किया जाता है। जनजातीय बहुल इलाकों में अत्याचार ज्यादा है। यहां पाकिस्तान पर इस्लामिक कानून लागू करने का भारी दबाव है। हिन्दू युवतियों और महिलाओं के साथ बलात्कार, अपहरण की घटनाएं आम है। उन्हें इस्लामिक मदरसों में रखकर जबरन धर्मान्तरण का दबाव दिया जाता है। गरीब हिन्दू तबका बंधुआ मजदूर की तरह जीने को मजबूर है। इसी तरह भारत के हस्तक्षेप से अस्तित्व में आए बांग्लादेश में भी हिन्दुओं पर अत्याचार के मामले में तेजी से बढ़े हैं। बांग्लादेश ने वेस्टेड प्रापर्टीज रिटर्न (एमेंडमेंट) बिल 2011 को लागू किया है जिसमें जब्त की गई या मुसलमानों द्वारा कब्जा की गई हिन्दुओं की जमीन को वापस लेने के लिए क्लेम करने का अधिकार नहीं है। इस बिल के पारित होने के बाद हिन्दुओं की जमीन कब्जा करने की प्रवृति बढ़ी है और इसे सरकारी संरक्षण भी मिल रहा है। इसका विरोध करने वाले मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और पत्रकारों पर भी जुल्म ढाए जाते हैं। इसके अलावा इस्लामी कïट्टरपंथियों के निशाने पर हिन्दुओं की आबादी है। इनके साथ मारपीट, बलात्कार, अपहरण, जबरन धर्मान्तरण, मंदिरों में तोडफ़ोड़ और शारीरिक उत्पीडऩ आम बात है। अगर यह जारी रहा तो अगले 25 वर्षों में बांग्लादेश में हिन्दुओं की आबादी ही समाप्त हो जाएगी।

बहु-धार्मिक, बहु-सांस्कृतिक और बहुभाषी देश कहे जाने वाले भूटान में भी हिन्दुओं के खिलाफ अत्याचार हो रहा है। 1990 के दशक में दक्षिण और पूर्वी इलाके से एक लाख हिन्दू अल्पसंख्यकों और नियंगमापा बौद्धों को बेदखल कर दिया गया। ईसाई बहुल देश फिजी में हिन्दुओं की आबादी 34 प्रतिशत है। यहां रहने वाले हिन्दुओं को हमेशा घृणास्पद भाषणों का सामना करना पड़ता है। 2008 में यहां कई हिन्दू मंदिरों को निशाना बनाया गया। 2009 में ये हमले बंद हुए। फिजी के मेथोडिस्ट चर्च ने लगातार इसे इसाई देश घोषित करने की मांग की लेकिन बैमानिरामा के प्रधानमंत्रित्व में गठित अंतरिम सरकार ने इसे खारिज कर दिया और अल्पसंख्यकों खासकर हिन्दुओं के संरक्षण की बात कही। मलेशिया घोषित इस्लामी देश है इस लिए यहां की हिन्दू आबादी को अक्सर भेदभाव का सामना करना पड़ता है। मंदिरों और अन्य धार्मिक स्थानों को यहां अक्सर निशाना बनाया जाता है। सरकार मस्जिदों को सरकारी जमीन और मदद मुहैया कराती है लेकिन हिन्दू धार्मिक स्थानों के साथ इस नीति को अमल में नहीं लाती। हिन्दू कार्यकर्ताओं पर तरह-तरह के जुल्म ढाए जाते हैं और उन्हें कानूनी मामलों में जबरन फंसाया जाता है। उन्हें शरिया अदालतों में पेश किया जाता है जहां अदालतों के आदेश को मानने के लिए दबाव बनाया जाता है।

सिंहली बहुल आबादी वाले श्रीलंका में हिन्दुओं के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार होता है। पिछले कई दशक से हिन्दू और तमिल आबादी खतरे का शिकार है। हिंसा के कारण उन्हें लगातार पलायन का दंश झेलना पड़ रहा है। हिन्दू संस्थानों को सरकारी संरक्षण नहीं मिलता है। त्रिनिदाद-टोबैगो में भारतीय मूल की कमला परसाद बिसेसर के सत्ता संभालने के बाद आशा बंधी है कि हिन्दुओं के साथ साठ दशकों से होता आ रहा अत्याचार समाप्त होगा। यहां की अधिकांश आबादी हिन्दू इंडो -त्रिनिदादियंस और एफ्रो-त्रिनिदादियंस की है। रोमन कैथालिक और हिन्दू बड़े समूह में हैं। हिन्दुओं को लगातार आक्रमण झेलना पड़ता है। इसके अलावा घृणास्पद भाषण और हिंसा का शिकार होना पड़ता है। इंडो -त्रिनिदादियंस समूह सरकारी नौकरियों और अन्य सरकारी सहायता से वंचित है। हिन्दू संस्थाओं के साथ और हिन्दू त्योहारों के दौरान हिंसा होती है।

हिन्दू अमेरिकन फाउंडेशन की आठवीं वार्षिक मानवाधिकार रिपोर्ट में जम्मू-कश्मीर में हिन्दुओं के खिलाफ हो रहे अत्याचार का भी जिक्र है। पाकिस्तान ने कश्मीर के 35 फीसदी भू-भाग पर अवैध तरीके से कब्जा कर रखा है। कुछ भाग चीन के हिस्से में तो अन्य हिस्सा भारत के पास है। 1980 के दशक से यहां पाकिस्तान समर्थित आतंकी सक्रिय हैं। कश्मीर घाटी से अधिकांश हिन्दू आबादी का पलायन हो चुका है। तीन लाख से ज्यादा कश्मीरी हिन्दू अपने ही देश में शरणार्थी के तौर पर रह रहे हैं। कश्मीरी पंडित रिफ्यूजी कैंप में बदतर स्थिति में रहने को मजबूर हैं।

यह चिंता की बात है कि दक्षिण एशिया में रह रहे हिंदुओं पर अत्यासचार के मामले लगातार बढ रहे हैं लेकिन चंद मानवाधिकार संगठनों की बात बात छोड दें तो वहां रह रहें हिंदुओं के हितों की रक्षा के लिए आवाज उठाने वाला कोई नहीं है। जिस तरह से श्रीलंका में तमिलों के मानवाधिकार हनन के मुद्दे पर अमेरिका,फ्रांस और नार्वे ने संयुक्त राष्ट्रय मानवाधिकार आयोग में प्रस्ताीव रखा और तमिल राजनीतिक दलों के दबाव में ही सही भारत को प्रस्तािव के पक्ष मंन वोट डालना पडा, इस तरह की पहल भारत को भी दक्षेस के मंच पर तो करनी ही करनी चाहिए।