Monday, June 18, 2012

जो काम करेगा, वही जीतेगा


हटिया विधानसभा उपचुनाव के नतीजे एकबारगी अप्रत्याशित लगते हैं लेकिन करीब से देखने पर पता चलता है कि रातों-रात कोई चमत्कार नहीं हुआ। आजसू प्रत्याशी की शानदार जीत के पीछे कई संदेश छिपे हैं जिसे देखना-परखना होगा। राजनीतिक दलों खासकर राष्ट्रीय पार्टियों भाजपा व कांग्रेस को यह जेहन में रखना होगा कि सिर्फ सपने देखने-दिखाने में अब जनता का विश्वास नहीं रहा। जनता धरातल पर काम देखना चाहती है। उपचुनाव का परिणाम राज्य सरकार के काम का पैमाना माना जाता है। हटिया में सत्तापक्ष के दो प्रमुख घटक दल भाजपा और आजसू के प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे। बाजी आजसू के हाथ लगी और कभी हटिया में जीत हासिल करने वाली भाजपा तीसरे स्थान पर खिसक गई। पिछले चुनाव में जीत दर्ज करने वाली कांग्रेस की जमानत जब्त हो गई। जरा सोचिए... ऐसी स्थिति क्यों आई? जरा भाजपा कोटे के मंत्रियों के परफारमेंस पर ध्या न दीजिए। भाजपानीत गठबंधन के मुखिया मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा हैं। उन्होंने लगभग दो साल में कई विकासपरक और कल्याणकारी योजनाओं को अंजाम दिया। यह जनता के जेहन में है। भाजपा कोटे के अन्य मंत्रियों का नाम दिमाग में लाने में भी थोड़ा वक्त लगता है। इन्होंने क्या किया? सिवाय अपने विभागीय अधिकारियों से उलझने और व्यर्थ के विवादों में फंसने के। जनता अब इन चीजों को बहुत बारीकी से देखती-परखती है। सधे कदमों से आजसू का विस्तार कर रहे सुदेश महतो की कार्यप्रणाली भी किसी से छिपी नहीं है। सिर्फ हटिया की बात करें तो गांव-गांव में सुदेश महतो ने स्वयं सहायता समूहों का गठन किया है इससे लोगों का जीवन स्तर उंचा उठा तो यह समझने में देर नहीं लगी कि किसे साथ देने में क्या फायदा है। इसके अलावा गली-गली तक जब पक्की सड़के पहुंची, कदम-कदम पर चेकडैम बने तो इलाके का नक्शा बदल गया। इसका फायदा भी मिला। भाजपा के प्रत्याशी कभी राज्य सरकार में मंत्री थे लेकिन उनके खाते में उपलब्धियां नहीं थी। दल ने भी उन्हें आखिरी बार आजमाया। कांग्रेस प्रत्याशी की भी बात करें तो एक कद्दावर नेता का छोटा भाई होने के अलावा उनकी उपलब्धि कुछ विशेष नहीं थी। हटिया में भाजपा- कांग्रेस की करारी हार और क्षेत्रीय दलों आजसू का पहले और झाविमो का दूसरे स्थान पर रहना राष्ट्रीय दलों के लिए खतरे की घंटी है। जमशेदपुर संसदीय उपचुनाव, मांडू और हटिया विधानसभा के उपचुनाव यह तस्दीक करते हैं कि झारखंड में क्षेत्रीय दल मजबूती के साथ उभर रहे हैं। झारखंड में बाबूलाल मरांडी, सुदेश महतो और हेमंत सोरेन का क्षेत्रीय क्षत्रप के रूप में तेजी से उदय हो रहा है। मतदाताओं ने कांग्र्रेस और भाजपा को खारिज करना शुरू कर दिया है। क्षेत्रीय दलों के उभार का एक प्रमुख कारण यह भी है कि राष्ट्रीमय दलों द्वारा आम जनता के हितों की उपेक्षा करने की प्रवृत्ति बढ रही है। ऐसे में जनता क्षेत्रीय मुद़्दों को उठाने वाले राजनीतिक दलों पर ज्याकदा भरोसा करने लगी है।

झारखंड में भाजपा के नेतृत्व में गठबंधन की सरकार चल रही है। हटिया का परिणाम संकेत दे रहा है कि यह देरसवेर राजनीतिक संकट बढ़ाएगा। मजबूत हो रहे दलों की महत्वाकांक्षा इस आग में घी का काम करेगी। इससे क्षेत्रीय दलों (झामुमो-आजसू) के बीच चुनावी गठबंधन का भी दौर शुरू हो सकता है। राज्यसभा चुनाव के दौरान यह प्रयोग हो चुका है। पहले यह संभावना थी कि झामुमो हटिया में आजसू को समर्थन की घोषणा करेगा लेकिन अंतिम वक्त में झामुमो ने तटस्थ रहने का ऐलान किया। यह रणनीति भी एक मायने में झामुमो के पाले में गई। देश में बढ़ते क्षेत्रीय क्षत्रपों के दबदबे के बीच झारखंड में भी स्थानीय नेताओं का कद उंचा हो रहा है। झारखंड में जिस तरह से सामाजिक चेतना का विस्ताभर हो रहा है और हर साल नए मतदाताओं की जो नई खेप आ रही है, वह पुराने पैमानों और नियमों से बंधा हुआ नहीं है। उसके अपने पैमाने होते हैं, जिसका अनुमान राष्ट्रीय पार्टियां ही नहीं लगा पाई तो पंजाब व बिहार की तर्ज पर झारखंड में भी राष्ट्रीय दल क्षेत्रीय पार्टियों की 'बी टीम बनने को मजबूर होंगे।