Saturday, March 13, 2010
महिला आरक्षण बिल
महिला आरक्षण बिल का राज्य सभा में पारित होना एक एतिहासिक घटना है। १४ साल के इंतजार के बाद देश की आधी आबादी को अब लगने लगा है कि उन्हें अब राजनीति में पुरूषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने का मौका मिल जाएगा। हालांकि अभी इस बिल को लम्बा रास्ता तय करना है। लोकसभा में पारित होने के बाद इसे राज्यों की मंजूरी के लिए भेजा जाएगा और राष्ट्रपति की मुहर लगने के बाद कानून बन जाएगा। जहां तक कुछ राजनीतिक दलों के विरोध की बात वह अनर्गल प्रलाप से ज्यादा कुछ नहीं है। लालू, मुलायम व शरद यादव को लगता यदि उन्होंने इसका विरोध नहीं किया तो उनका जनाधार खतरें में पड जाएगा। मंडल की राजनीति के सहारे सत्ता संधान का सपना देखने वाले इन नेताओं को यह मालूम होना चाहिए कि देश की आधी आबादी (महिलाएं) शोषित और वंचित हैं,चाहे वे किसी भी वर्ग से संबंध रखती हों। केवल दलित,पिछडी और मुसलिम महिलाओं के नाम पर इस एतिहासिक बिल का विरोध एक राजनीतिक ड्रामा के सिवा कुछ भी नहीं है।यदि उन्हें लगता है कि उनके वोट बैंक से जुडी महिलाओं की राजनीति में और भगीदारी होनी चाहिए तो वे अपनी- अपनी पार्टी में उनको 33 प्रतिशत टिकट दें सकतें हैं उन्हें रोक कौन रहा है।
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