भारतीय समाज की मूलभूत इकाई परिवार है। बदलते समय में एकल परिवारों के चलन के साथ जीवन में रिश्तेदारों और सगे-संबंधियों की महत्ता उपरी तौर पर भले ही कम हुई हो, लेकिन प्रायोगिक तौर पर अगर देखें तो युवा पीढ़ी की कई परेशानियों का हल रिश्तेदारों के माध्यम से आसानी से मिल सकता है। रिश्तेदार जीवन का ऐसा अंग हैं, जिनके लिए व्यस्तता के बीच भी समय निकालना सामाजिक जीवन के लिए बहुत जरूरी है। आज के समय में हर कोई अपने जीवन में व्यस्त है, लेकिन हमारे समाज की इकाई परिवार है और इसीलिए सामाजिक ताने-बाने को बनाए रखने के लिए अपने सगे-संबंधियों के संपर्क में रहना जरूरी है। समाज के ढ़ांचे को बनाए रखने के लिए साल के कम से कम एक दिन तो अपने अपनों के नाम रखना चाहिए।
भारतीय समाज में माता-पिता, पड़ोसियों और सगे-संबंधियों की अपनी भूमिका है, जिसे बेहद व्यस्त रहने वाली आधुनिक युवा पीढ़ी को भी स्वीकार करनी चाहिए। भागते-दौड़ते जीवन की कई परेशानियां रिश्तेदारों और सगे-संबंधियों के बीच विमर्श से ही सुलझ जाती हैं। महानगरों में कामकाजी लोगों को भले ही अपने सगे-संबंधियों या रिश्तेदारों से मिलने का समय न मिले, लेकिन कई परिस्थितियों में रिश्तेदारों के बीच बैठने से समस्याओं का चुटकियों में समाधान निकल जाता है। जिंदगी में दोस्तों और रिश्तेदारों की अलग-अलग अहमियत है।
Monday, May 17, 2010
Friday, May 14, 2010
छोटी-सी चींटी
एक छोटी-सी चींटी हर दिन दफ्तर में समय से पहले पहुंच जाती थी और तुरंत काम शुरू कर देती थी। अपने काम से वह खुद काफी खुश थी। उसका आउटपुट काफी था। उसका सर्वोच्च बॉस, जो एक शेर था, इस बात से चकित था कि चींटी बिना किसी पर्यवेक्षक के इतना काम कैसे करती है। उसने सोचा कि चींटी अगर बगैर किसी पर्यवेक्षक के इतना काम कर रही है तो उसके ऊपर एक सुपरवाइजर रख दिया जाए तो वह और ज्यादा काम करेगी। इसलिए शेर ने एक तिलचट्टे को सुपरवाइजर बना दिया।
तिलचट्टे को काम का काफी अनुभव था। वह अच्छी रिपोर्ट लिखने के लिए मशहूर था। तिलचट्टे ने जो पहला निर्णय लिया वह यह कि दफ्तर में घड़ी लगाई जाए और उपस्थिति लगाने की व्यवस्था दुरुस्त की जाए।यह सब करने और रिपोर्ट तैयार करने के लिए उसे एक सेक्रेट्री की जरूरत महसूस हुई। उसने एक मकड़े को नियुक्त कर लिया। वह उसकी क्लिपिंग और पुरानी फाइलों आदि का हिसाब रखता था और फोन कॉल (उस समय मोबाइल नहीं थे) आदि देखता था।
तिलचट्टे की रिपोर्ट से शेर बहुत खुश हुआ और उत्पादन दर बताने के लिए ग्राफ बनाने और विकास की प्रवृत्तियों के झुकावों आदि का विश्लेषण करने के लिए शेर ने तिलचट्टे को कहा ताकि वह बोर्ड मीटिंग में इसका उपयोग कर सके। इसके लिए तिलचट्टे को कंप्यूटर और प्रिंटर की जरूरत हुई। इन सब की देखभाल करने के लिए उसने एक मक्खी की नियुक्ति कर ली।
सारे मामले की तह में जाने और समाधान सुझाने के लिए शेर ने एक प्रतिष्ठित और जाने-माने सलाहकार उल्लू को नियुक्त किया।
उल्लू ने इसमें तीन महीने लगाए और एक भारी भरकम रिपोर्ट तैयार करके दी। यह कई खंडों में थी। इसका निष्कर्ष था, विभाग में कर्मचारियों की संख्या बहुत ज्यादा है।
अनुमान लगाइए शेर सबसे पहले किसे हड़काएगा? बेशक चींटी को क्योंकि उसमें काम के प्रति लगन के भाव का अभाव दिख रहा था और उसकी सोच भी नकारात्मक हो गई थी।
संदेश------
चींटी मत बनिए।
Tuesday, May 11, 2010
मदर्स डे पर
मैं आज जो कुछ भी हूं वह अपनी मां की बदौलत हूं। मां के बगैर इस उंचाई की कल्पना भी नहीं कर सकता। मां ने समझाया जो भी पढ़ो उसकी तह तक जाओ। मैं तो उन सौभाग्यशाली व्यक्तियों में हूं जिसकी मां आज भी जीवित है। कम पढ़ी लिखी होने के बावजूद तरक्की की हर डगर में उन्होंने मेरा साथ दिया। सूर्य की भांति उन्होंने कदम कदम पर प्रकाश दिखाया। सांसारिक शिक्षा तो मुझे विद्यालय से मिली परन्तु मां की गोद से मुझे जिन मानवीय पहलुओं को समझने और उसे आत्मसात करने का जो इल्म हासिल हुआ उसी के चलते यहां तक पहुंच सका। सच मानिए मां सारी इंसानियत के लिए कुदरत का बेहतरीन तोहफा है। शेक्सपीयर ने भी मां को नर्म आगोश कहा है। नेपोलियन की जुबान में- तुम मुझे अच्छी मां दोगे तो मैं उसे बेहतरीन कौम दूंगा। मां की बाबत शायर ताहिर फराज के अल्फाज में कहना यहां प्रसांगिक होगा।
तेरा मन अमृत का प्याला, यही काबा यही शिवाला, तेरी ममता जीवनदायी, माई ओ माई।
बचपन की प्यास बुझा दे अपने हाथों से खिला दे, पल्लू से बंधी मिठाई, माई-ओ-माई।
तेरा मन अमृत का प्याला, यही काबा यही शिवाला, तेरी ममता जीवनदायी, माई ओ माई।
बचपन की प्यास बुझा दे अपने हाथों से खिला दे, पल्लू से बंधी मिठाई, माई-ओ-माई।
इंसान की कल्पनाओं को उड़ान देती पतंग
उड़ने की हसरत लिए इंसान में अपनी परवाज से विश्वास पैदा करने वाली पतंग अपने दो हजार आठ सौ वर्षों के इतिहास में विभिन्न प्रयोगों, स्वरूपों और निहित मान्यताओं की वजह से मानव के लिए हमेशा महत्वपूर्ण रही है। डोर थामने वाले की उमंगों को उड़ान देने वाली पतंग दुनिया के विभिन्न हिस्सों में अलग अलग मान्यताओं, परम्पराओं तथा अंधविश्वास की भी वाहक रही है। माना जाता है कि पांचवीं सदी ईसा पूर्व से चीन की जमीन से उड़ान भरकर धीरे-धीरे पूरी दुनिया पर छा जाने वाली पतंग का आविष्कार पांचवी सदी ईसा पूर्व चीन के दार्शनिकों मोजी और लू बान ने किया था। हालांकि यूरोप अगली कई शताब्दियों तक पतंग से अनजान रहा।
दुनिया के कई हिस्सों का सफर तय करने वाले मार्को पोलो के यूरोप आने पर पतंग का रिवाज भी इस महाद्वीप में पहुंचा। चीनी दस्तावेजों के मुताबिक पतंग का इस्तेमाल दूरियां नापने, हवा के रुख का पता लगाने, संकेत देने और सेना के लिए संचार उपकरण के रूप में भी किया जाता था। इंसान की महत्वाकांक्षा को आसमान बख्शने वाली पतंग कहीं शगुन और अपशकुन से जुड़ी है तो कहीं ईश्वर तक अपना संदेश पहुंचाने के जरिए के रूप में प्रतिष्ठित है। प्राचीन दंतकथाओं पर विश्वास करें तो चीन और जापान में पतंगों का इस्तेमाल सैन्य उद्देश्यों के लिए भी किया जाता था। चीन में किंग राजवंश के शासन के दौरान उड़ती पतंग को यूं ही छोड़ देना दुर्भाग्य और बीमारी को न्यौता देने के समान माना जाता था। कोरिया में पतंग पर बच्चे का नाम और उसके जन्म की तारीख लिखकर उड़ाया जाता था ताकि उस साल उस बच्चे से जुड़ा दुर्भाग्य पतंग के साथ ही उड़ जाए।
मान्यताओं के मुताबिक थाईलैंड में बारिश के मौसम में लोग भगवान तक अपनी प्रार्थना पहुंचाने के लिए पतंग उड़ाते थे जबकि कटी पतंग को उठाना अपशकुन माना जाता था। दुनिया के विभिन्न हिस्सों के आसमान में लहराती पतंग का रिवाज आगे बढ़ते बढ़ते भारत पहुंचा और वह यहां की गंगा जमुनी संस्कृति में शामिल हो गया। भारत में पतंग उड़ाने का शौक दीवानगी बनकर उभरा और बच्चों से लेकर बूढ़ों तक में इसके प्रति मोह पैदा हुआ। खालिद हुसैनी की चर्चित किताब 'काइट रनर' में भारत में पतंगबाजी तथा इसके शगल से जुड़ी रवायतों और उसूलों का बड़ी खूबसूरती से जिक्र किया गया है। भारत में मकर संक्रांति बसंत पंचमी और स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लोगों की पतंगबाजी के शौक और इससे जुड़े उल्लास के दीदार अब भी किए जा सकते हैं। दुनिया के कई हिस्सों में 12 मई को 'काइट डे' मनाया जाता है हालांकि इसके कारण का कहीं आधिकारिक जिक्र नहीं मिलता है।
आज की भागमभाग भरी जिंदगी में हमारे हाथों से पतंग की डोर भले ही छूट गई हो लेकिन नीले आकाश में रंगबिरंगी पतंगों की परवाज आज भी सुकून देती है।
दुनिया के कई हिस्सों का सफर तय करने वाले मार्को पोलो के यूरोप आने पर पतंग का रिवाज भी इस महाद्वीप में पहुंचा। चीनी दस्तावेजों के मुताबिक पतंग का इस्तेमाल दूरियां नापने, हवा के रुख का पता लगाने, संकेत देने और सेना के लिए संचार उपकरण के रूप में भी किया जाता था। इंसान की महत्वाकांक्षा को आसमान बख्शने वाली पतंग कहीं शगुन और अपशकुन से जुड़ी है तो कहीं ईश्वर तक अपना संदेश पहुंचाने के जरिए के रूप में प्रतिष्ठित है। प्राचीन दंतकथाओं पर विश्वास करें तो चीन और जापान में पतंगों का इस्तेमाल सैन्य उद्देश्यों के लिए भी किया जाता था। चीन में किंग राजवंश के शासन के दौरान उड़ती पतंग को यूं ही छोड़ देना दुर्भाग्य और बीमारी को न्यौता देने के समान माना जाता था। कोरिया में पतंग पर बच्चे का नाम और उसके जन्म की तारीख लिखकर उड़ाया जाता था ताकि उस साल उस बच्चे से जुड़ा दुर्भाग्य पतंग के साथ ही उड़ जाए।
मान्यताओं के मुताबिक थाईलैंड में बारिश के मौसम में लोग भगवान तक अपनी प्रार्थना पहुंचाने के लिए पतंग उड़ाते थे जबकि कटी पतंग को उठाना अपशकुन माना जाता था। दुनिया के विभिन्न हिस्सों के आसमान में लहराती पतंग का रिवाज आगे बढ़ते बढ़ते भारत पहुंचा और वह यहां की गंगा जमुनी संस्कृति में शामिल हो गया। भारत में पतंग उड़ाने का शौक दीवानगी बनकर उभरा और बच्चों से लेकर बूढ़ों तक में इसके प्रति मोह पैदा हुआ। खालिद हुसैनी की चर्चित किताब 'काइट रनर' में भारत में पतंगबाजी तथा इसके शगल से जुड़ी रवायतों और उसूलों का बड़ी खूबसूरती से जिक्र किया गया है। भारत में मकर संक्रांति बसंत पंचमी और स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लोगों की पतंगबाजी के शौक और इससे जुड़े उल्लास के दीदार अब भी किए जा सकते हैं। दुनिया के कई हिस्सों में 12 मई को 'काइट डे' मनाया जाता है हालांकि इसके कारण का कहीं आधिकारिक जिक्र नहीं मिलता है।
आज की भागमभाग भरी जिंदगी में हमारे हाथों से पतंग की डोर भले ही छूट गई हो लेकिन नीले आकाश में रंगबिरंगी पतंगों की परवाज आज भी सुकून देती है।
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