Tuesday, May 11, 2010

मदर्स डे पर

मैं आज जो कुछ भी हूं वह अपनी मां की बदौलत हूं। मां के बगैर इस उंचाई की कल्पना भी नहीं कर सकता। मां ने समझाया जो भी पढ़ो उसकी तह तक जाओ। मैं तो उन सौभाग्यशाली व्यक्तियों में हूं जिसकी मां आज भी जीवित है। कम पढ़ी लिखी होने के बावजूद तरक्की की हर डगर में उन्होंने मेरा साथ दिया। सूर्य की भांति उन्होंने कदम कदम पर प्रकाश दिखाया। सांसारिक शिक्षा तो मुझे विद्यालय से मिली परन्तु मां की गोद से मुझे जिन मानवीय पहलुओं को समझने और उसे आत्मसात करने का जो इल्म हासिल हुआ उसी के चलते यहां तक पहुंच सका। सच मानिए मां सारी इंसानियत के लिए कुदरत का बेहतरीन तोहफा है। शेक्सपीयर ने भी मां को नर्म आगोश कहा है। नेपोलियन की जुबान में- तुम मुझे अच्छी मां दोगे तो मैं उसे बेहतरीन कौम दूंगा। मां की बाबत शायर ताहिर फराज के अल्फाज में कहना यहां प्रसांगिक होगा।
तेरा मन अमृत का प्याला, यही काबा यही शिवाला, तेरी ममता जीवनदायी, माई ओ माई।
बचपन की प्यास बुझा दे अपने हाथों से खिला दे, पल्लू से बंधी मिठाई, माई-ओ-माई।

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