Tuesday, May 11, 2010

इंसान की कल्पनाओं को उड़ान देती पतंग

उड़ने की हसरत लिए इंसान में अपनी परवाज से विश्वास पैदा करने वाली पतंग अपने दो हजार आठ सौ वर्षों के इतिहास में विभिन्न प्रयोगों, स्वरूपों और निहित मान्यताओं की वजह से मानव के लिए हमेशा महत्वपूर्ण रही है। डोर थामने वाले की उमंगों को उड़ान देने वाली पतंग दुनिया के विभिन्न हिस्सों में अलग अलग मान्यताओं, परम्पराओं तथा अंधविश्वास की भी वाहक रही है। माना जाता है कि पांचवीं सदी ईसा पूर्व से चीन की जमीन से उड़ान भरकर धीरे-धीरे पूरी दुनिया पर छा जाने वाली पतंग का आविष्कार पांचवी सदी ईसा पूर्व चीन के दार्शनिकों मोजी और लू बान ने किया था। हालांकि यूरोप अगली कई शताब्दियों तक पतंग से अनजान रहा।
दुनिया के कई हिस्सों का सफर तय करने वाले मार्को पोलो के यूरोप आने पर पतंग का रिवाज भी इस महाद्वीप में पहुंचा। चीनी दस्तावेजों के मुताबिक पतंग का इस्तेमाल दूरियां नापने, हवा के रुख का पता लगाने, संकेत देने और सेना के लिए संचार उपकरण के रूप में भी किया जाता था। इंसान की महत्वाकांक्षा को आसमान बख्शने वाली पतंग कहीं शगुन और अपशकुन से जुड़ी है तो कहीं ईश्वर तक अपना संदेश पहुंचाने के जरिए के रूप में प्रतिष्ठित है। प्राचीन दंतकथाओं पर विश्वास करें तो चीन और जापान में पतंगों का इस्तेमाल सैन्य उद्देश्यों के लिए भी किया जाता था। चीन में किंग राजवंश के शासन के दौरान उड़ती पतंग को यूं ही छोड़ देना दुर्भाग्य और बीमारी को न्यौता देने के समान माना जाता था। कोरिया में पतंग पर बच्चे का नाम और उसके जन्म की तारीख लिखकर उड़ाया जाता था ताकि उस साल उस बच्चे से जुड़ा दुर्भाग्य पतंग के साथ ही उड़ जाए।
मान्यताओं के मुताबिक थाईलैंड में बारिश के मौसम में लोग भगवान तक अपनी प्रार्थना पहुंचाने के लिए पतंग उड़ाते थे जबकि कटी पतंग को उठाना अपशकुन माना जाता था। दुनिया के विभिन्न हिस्सों के आसमान में लहराती पतंग का रिवाज आगे बढ़ते बढ़ते भारत पहुंचा और वह यहां की गंगा जमुनी संस्कृति में शामिल हो गया। भारत में पतंग उड़ाने का शौक दीवानगी बनकर उभरा और बच्चों से लेकर बूढ़ों तक में इसके प्रति मोह पैदा हुआ। खालिद हुसैनी की चर्चित किताब 'काइट रनर' में भारत में पतंगबाजी तथा इसके शगल से जुड़ी रवायतों और उसूलों का बड़ी खूबसूरती से जिक्र किया गया है। भारत में मकर संक्रांति बसंत पंचमी और स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लोगों की पतंगबाजी के शौक और इससे जुड़े उल्लास के दीदार अब भी किए जा सकते हैं। दुनिया के कई हिस्सों में 12 मई को 'काइट डे' मनाया जाता है हालांकि इसके कारण का कहीं आधिकारिक जिक्र नहीं मिलता है।
आज की भागमभाग भरी जिंदगी में हमारे हाथों से पतंग की डोर भले ही छूट गई हो लेकिन नीले आकाश में रंगबिरंगी पतंगों की परवाज आज भी सुकून देती है।

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