Saturday, July 4, 2015

झारखंड में बिजली संकट

झारखंड सरकार इन दिनों बिजली की उपलब्धता को लेकर चिंता में डूबी है। यह सही भी है और वक्त की मांग भी। दुर्भाग्य से बीते 14 सालों में बिजली को लेकर बातें खूब हुईं। कागजों पर हजारों मेगावाट का उत्पादन हुआ, लेकिन कोई योजना धरातल पर नहीं उतर पाई। इसकी वजह राजनीतिक अस्थिरता को बताया जाता है, लेकिन सिर्फ राजनीतिक नेतृत्व के मत्थे इस कमी को मढ़ना ज्यादती होगी। सरकारें बदल जाती हैं, पर योजनाओं को आकार रूप देने का काम कार्यपालिका करती है। लिहाजा अधिकारियों को भी अपनी चूक का अहसास करना होगा। ऐसे वक्त में जब बिजली के बगैर जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती तो आखिरकार किस संसाधन के भरोसे झारखंड को पटरी पर लाने का सपना पूरा होगा।1स्थिति चिंताजनक है और काम करने का यही वक्त है। जब जागें, तभी सवेरा। मुख्यमंत्री रघुवर दास इस दिशा में गंभीरता से कार्रवाई करते दिख रहे हैं। वे पूर्व में भी इस विभाग के मंत्री रहे हैं। उनका पुराना अनुभव कामकाज को दुरुस्त करने में सहायक सिद्ध होगा। उन्होंने बिजली उत्पादन के क्षेत्र में हाल ही में केंद्र सरकार के लोक उपक्रम नेशनल थर्मल पावर कार्पोरेशन (एनटीपीसी) के साथ करार किया है। इसके तहत एनटीपीसी राज्य सरकार की जर्जर बिजली उत्पादन इकाई पतरातू थर्मल पावर स्टेशन (पीटीपीएस) की कमान अपने हाथ में लेगी। रूसी तकनीक पर इस ताप विद्युत इकाई की स्थापना 70 के दशक में हुई थी। फिलहाल इसे फिर से दुरुस्त करना कठिन काम है। एनटीपीसी यहां क्रमबद्ध तरीके से नए पावर प्लांट की भी स्थापना करेगी। अगर इस योजना पर काम आगे बढ़े तो बिजली की उपलब्धता राज्य में होगी। हालांकि फिलहाल यह काम मंद गति से चल रहा है और आरंभिक स्टेज में है। एनटीपीसी के अधिकारी मौजूदा संसाधनों का आकलन कर रहे हैं। यहां से तत्काल किसी चमत्कार की उम्मीद नहीं की जा सकती। 1ऐसा नहीं है कि राज्य में बिजली को लेकर लंबीचौड़ी योजनाएं नहीं बनीं। कालांतर में कई निवेशकों ने इसमें रुचि भी दिखाई, लेकिन हतोत्साहित होकर भाग खड़े हुए। रिलांयस पावर ने हाल ही में अपनी योजना से हाथ खींच लिया। यह महती योजना धरातल पर उतरती तो करार के मुताबिक राज्य को कुल उत्पादन का 25 फीसद बिजली काफी कम दर पर मिल जाती। खैर, अब नए सिरे से प्रयास इस ढंग से हो कि उनका हश्र पुरानी योजनाएं जैसी नहीं हो। 1बिजली के क्षेत्र में बीते डेढ़ दशक की उपलब्धियां घोर निराशा पैदा करती हैं। सारे संयंत्र पुराने हैं और तकनीकी खामियों के दौर से गुजर रहे हैं। बिजली को सबसे बड़ा झटका नेता, अधिकारी और ठेकेदारों की साठगांठ ने दिया है। झारखंड राज्य विद्युत बोर्ड (अब इसकी चार स्वतंत्र कंपनियां हैं) को घोटाला बोर्ड के नाम से ज्यादा जाना जाता है। एक पूर्व मुख्यमंत्री को यहां हुए घोटालों की वजह से लंबी जेल यात्र करनी पड़ी। सरकारी राशि को बड़े पैमाने पर भ्रष्ट अधिकारी और ठेकेदार डकार गए। तीन पूर्व चेयरमैन के खिलाफ संगीन आरोप लगे। ये मामले आज भी चल रहे हैं, लेकिन किसी मुकाम तक नहीं पहुंचे। औनेपौने दाम पर उपकरणों की खरीद हुई। कई अधिकारियों ने खुद की फर्म बनाकर फर्जी आपूर्ति की। भारतीय प्रशासनिक सेवा के एक वरीय अधिकारी ने इसे रोकने के लिए नियम-कायदे बनाए। उसके साथ भी छेड़छाड़ की कोशिश की गई। कई मामलों की जांच सीबीआइ कर रही है। खुद सरकार ने हाईकोर्ट को दिए गए एक शपथपत्र में कबूला था कि जांच की जद में 177 अधिकारी हैं। आज भी स्थितियां कमोवेश ऐसी ही हैं। भ्रष्टाचार बिजली के क्षेत्र में घुन की तरह मिलकर इसे खोखला कर रहा है। इस मोर्चे पर सरकार को सख्ती से पेश आना होगा। ऐसे अधिकारी चिह्न्ति किए जाएं, जो पूर्व में घपले कर साफ बच निकल गए। इससे भ्रष्ट तरीके अपनाने वालों में दहशत होगी और महकमे को पटरी पर लाना आसान होगा। उन ठेका कंपनियों को भी कार्रवाई के शिकंजे में लाना होगा, जिन्होंने बगैर काम किए सैकड़ों करोड़ डकार लिए। 1बिजली क्षेत्र में सुधारात्मक उपाय अपनाने की दिशा में भी राज्य फिसड्डी है। झारखंड विखंडन की प्रक्रिया को अपनाने वाला देश का सबसे अंतिम राज्य है। यह प्रक्रिया आज भी आधी-अधूरी है। विद्युत बोर्ड का विखंडन कर एक होल्डिंग कंपनी समेत चार नई कंपनियां बनाई गई। तमाम प्रमुख पदों पर अधिकारी-इंजीनियर तैनात कर दिए गए, लेकिन क्या सिर्फ दस्तावेजों में बिजली की स्थिति सुधरेगी। इसके लिए जर्जर वितरण व्यवस्था में बदलाव लाना होगा। सालों साल बिजली के तार नहीं बदले जाते। विकसित राज्य अब अत्याधुनिक ट्रांसफार्मरों का उपयोग कर रहे हैं और झारखंड पुराने र्ढे पर चल रहा है। उपकरणों की खरीद तक ब्लैक लिस्टेड कंपनियों से होती है। जाहिर है ब्लैक लिस्टेड कंपनियों से खरीदी गई सामग्री निम्न स्तर की होगी। पावर ट्रांसफार्मर लगातार जवाब दे रहे हैं। ग्रामीण विद्युतीकरण का भी यही हाल है। गांवों में काफी कम क्षमता के ट्रांसफार्मर लगाए गए। उनकी गुणवत्ता भी संदिग्ध है। सैकड़ों गांव आज भी रोशनी से वंचित हैं। ऐसी स्थिति में फौरी तौर पर सुधार की गुंजाइश तो नहीं दिखती, लेकिन लगातार प्रयास से इस स्थिति में बदलाव अवश्य होगा। इसके लिए प्रयास बड़े पैमाने पर होना चाहिए। राज्य सरकार कई कंपनियों के साथ एमओयू कर रही है। निवेशकों को आमंत्रित किया जा रहा है। ऐसे में यह सोचना होगा कि हम उन्हें बिजली कहां से मुहैया कराएंगे। बगैर बिजली के उद्योग-धंधे पनपने से रहे। विकास की आवश्यक शर्तो में बिजली है। झारखंड के कोयले से देश के अन्य प्रांत जगमगाते हैं, लेकिन दुर्भाग्य से झारखंड अंधेरे में रहने को विवश है। समय की मांग है कि ताप विद्युत संयंत्रों के साथ-साथ गैर परंपरागत ऊर्जा स्रोत स्थापित करने पर भी ध्यान देना होगा। राज्य में पनबिजली की संभावनाएं हैं, लेकिन इसपर सिर्फ कागजों में ही बात बढ़ती है। एक पनबिजली परियोजना सिकिदरी में है, लेकिन उससे पर्याप्त उत्पादन नहीं मिल पाता। सौर ऊर्जा के क्षेत्र में प्रयास किया जाना चाहिए। इसके लिए आवश्यक संसाधन राज्य सरकार को मुहैया कराना होगा। 14 साल में प्रदेश की आबादी लगभग एक करोड़ बढ़ गई, लेकिन बिजली के संसाधन पहले जैसे ही हैं। इस स्थिति से राज्य को उबारना पड़ेगा। अगर इच्छाशक्ति हो तो इस दिशा में काम किया जा सकता है। वैसे कई प्रदेशों का उदाहरण सामने है, जहां प्राकृतिक संसाधन नहीं रहने के बावजूद वे इतने सक्षम हैं कि बिजली की किल्लत नहीं होती। उत्तर-पूर्व के राज्यों ने पनबिजली के क्षेत्र में बेहतर काम किया है। झारखंड की भौगोलिक परिस्थितियां विषम है। इस परिस्थिति को अवसर के रूप में लेना होगा। ताप विद्युत इकाइयां वैसे स्थानों पर बनें, जहां कोल ब्लॉक और पानी की उपलब्धता हो। इससे उत्पादन की लागत कम होगी। जलाशयों का इस्तेमाल पनबिजली योजनाओं के लिए किया जाए। बंजर और ऊसर भूमि का उपयोग सौर ऊर्जा संयंत्र लगाने में किया जा सकता है। समेकित प्रयास से कुछ साल में झारखंड बिजली के क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो सकता है। 

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