Friday, April 29, 2016

झारखंड ने दिखाई राह

यह अपने आप में वाकई अजूबा प्रयोग है। पहले सचिवालय के वातानुकूलित कमरों में सुदूर गांव-देहात की योजनाएं बनती थीं। हश्र यह होता था कि पैसे की बंदरबांट होती थी और लोगों को सुविधाएं भी नहीं मिल पाती थीं। मुख्यमंत्री रघुवर दास ने पहल करते हुए यह तय किया कि गांव की योजनाएं गांव के लोग ही मिलकर बनाएंगे। ग्राम समिति यह फैसला लेगी कि प्राथमिकता कैसे निर्धारित की जाए। उन्होंने खुद ज्यादातर जिलों के सुदूर इलाकों का भ्रमण किया। साथ में आला अधिकारी भी गए। जमीन पर चादर बिछाकर चौपाल सजी। योजनाएं वहीं तैयार की गईं। इसका परिणाम यह हुआ कि प्रधानमंत्री कार्यालय तक जब इस अभिनव प्रयोग की जानकारी पहुंची तो झारखंड की वाहवाही हुई। इस राह को अपनाते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी आह्वान किया कि गांवों-पंचायतों के लिए पैसे की कमी नहीं है। जरूरत है कि ग्राम सभाएं यह तय करे कि उन्हें किन योजनाओं को प्राथमिकताएं देनी है। 124 अप्रैल को जमशेदपुर में आयोजित पंचायती राज सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने झारखंड सरकार के बजट बनाओ अभियान का जिक्र किया। अभियान की सराहना की और कहा कि एक कदम आगे बढ़कर कृषि के लिए अलग बजट तैयार करना और सिंगल विंडो सिस्टम विकसित करना राह दिखाता है। वाकई पिछड़े प्रदेशों में शुमार झारखंड ने हाल के महीनों में कुछ ऐसी प्रसिद्धि पाई है जो इसे बीमार प्रदेश से विकसित प्रदेश बनाने की दिशा में मददगार होगी। गांवों में योजनाएं फलीभूत होंगी, लोगों को रोजगार मिलेगा तो एक झटके में कई योजनाओं का समाधान भी हो जाएगा। नेतृत्व की दूरदृष्टि इसी से प्रमाणित होती है। पहले ऐसा समेकित प्रयास कहीं नहीं हुआ। देशभर में छिटपुट प्रयास अवश्य हुए लेकिन महज छह माह की कवायद में झारखंड के पंचायती राज प्रतिनिधियों ने दस लाख से ज्यादा योजनाओं का चयन कर इसे सरकार के समक्ष पेश कर दिया। यह सरकार की इच्छाशक्ति का ही नतीजा है जो राज्य को विकास के पथ पर तेजी से आगे ले जाने के साथ-साथ झारखंड के बारे में प्रचलित अवधारणा को समाप्त करने में भी मददगार साबित हो रहा है। ‘सबका साथ-सबका विकास’ का मूल मकसद भी यही है कि सबकी सहभागिता महती कार्यक्रमों में हो। हम सिर्फ अपनी बातें या विचार थोप कर जिम्मेदारी से भाग नहीं सकते। 1योजना बनाओ अभियान की राज्य में अपार सफलता का ही परिणाम था कि प्रधानमंत्री ने देशभर की पंचायतों को संबोधित करने के लिए झारखंड का चयन किया। इससे पहले पंचायती राज दिवस का औपचारिक कार्यक्रम नई दिल्ली के विज्ञान भवन में करने की परंपरा रही है लेकिन प्रधानमंत्री ने जमशेदपुर में कहा कि दिल्ली देश नहीं है। देश को अगर मजबूत बनाना है तो गांवों को मजबूत करना होगा। यह गांवों को विविध योजनाओं के जरिए सशक्त करने की झारखंड सरकार की मुहिम का प्रतिफल था कि झारखंड को देशभर के 3000 चुनिंदा पंचायती राज प्रतिनिधियों ने करीब से देखा। जानकारी भी हासिल की कि कैसे यहां आदिवासी स्वशासन व्यवस्था के तहत पंचायतें कारगर भूमिका निभाती हैं। यह आम बजट में गांवों पर फोकस करने की अगली कड़ी है कि तमाम योजनाओं का सूत्रपात ग्रामीण इलाकों से हो। हम वहां ज्यादा फोकस करें जो उत्पादन में अपना अमूल्य योगदान देता है लेकिन संसाधनों के इस्तेमाल में पिछड़ा है। ज्यादातर गांव बुनियादी जरूरतों से भी वंचित हैं। गांव-शहर की यह खाई अगर समय रहते कम नहीं की गई तो इससे विसंगतियां बढ़ेंगी। नक्सलियों की धमक इसकी एक बानगी भर है। अगर गांव तक बुनियादी सुविधाओं के साथ-साथ अन्य संसाधन और रोजगार के अवसर पहुंचे तो हर हाथ को वहीं काम मिल जाएगा। खेती की सुविधाएं बढ़ीं और आधुनिक तकनीक पर आधारित कृषि का प्रचलन तेज हुआ तो झारखंड की उत्पादकता भी बढ़ेगी जो अभी तक सिर्फ वर्षा जल और पारंपरिक खेती पर निर्भर है। इससे पूर्व हजारीबाग में कृषि विज्ञान केंद्र की आधारशिला रख केंद्र सरकार ने यह संदेश दिया था कि अगली हरित क्रांति का सूत्रपात पूर्वी भारत से ही होगा और झारखंड इसमें महती भूमिका अदा करेगा। इसकी इच्छाशक्ति राज्य में दिख रही है, इसलिए परिणाम भी सकारात्मक आएंगे। सिंचाई संसाधनों का बेहतर उपयोग, विषम भौगोलिक परिस्थिति के मुताबिक कृषि, बंजर भूमि पर कल-कारखाने समेत अन्य संसाधनों का विकास समय की जरूरत है। जब ग्रामीण खुद अपनी योजनाएं तैयार करेंगे तो ऐसी स्थिति की गुंजाइश नहीं के बराबर होगी। राज्य सरकार ने स्थानीय योजनाओं के अनुश्रवण की जिम्मेदारी भी पंचायती राज प्रतिनिधियों को दी है। इसका भी सख्ती से पालन किया जाना चाहिए। अधिकारी अपना लक्ष्य पूरा करने के लिए फर्जी जानकारी सरकार को उपलब्ध कराते रहे हैं। ग्रामीण विद्युतीकरण के कार्य में इसका खुलासा हुआ है। स्वयं पीएमओ भी इसे लेकर सतर्क है कि कामकाज पर निगाह पंचायती राज प्रतिनिधि रखें और सही जानकारी प्रशासन को मुहैया कराएं। यह अत्यंत आवश्यक है। योजनाओं को अगर पंचायतों के जरिए धरातल पर उतारा जाता है तो बिचौलियों की भूमिका नगण्य हो जाएगी। मुख्यमंत्री रघुवर दास भी इस पक्ष में हैं कि बिचौलियों की दखलंदाजी बंद की जाए और काम सीधे पंचायतों के जरिए कराए जाएं। पहले चरण में राज्य में तमाम पंचायतों का सचिवालय बनाने का फरमान जारी किया गया है। चालू वित्तीय वर्ष में यह काम पूरा हो जाएगा तो पंचायतों की अनदेखी नहीं होगी। पंचायतों को विविध 29 विभागों की शक्तियां प्रदान की गई हैं। यह भी ख्याल रखना होगा कि भारी मात्र में धन की उपलब्धता का दुरुपयोग नहीं हो। 14वें वित्त आयोग ने इसकी सिफारिश की है जिसमें झारखंड को हजारों करोड़ की राशि मिलेगी। इसका सही इस्तेमाल करने के संबंध में भी राज्य सरकार ने सतर्क किया है। योजना बनाओ अभियान के दौरान मुख्यमंत्री भी इसकी जानकारी दे रहे हैं कि धन का गलत इस्तेमाल नहीं हो वरना प्रतिनिधियों को कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा। झारखंड सरकार का गांवों में गांव के लोगों के लिए योजनाएं बनाने का प्रयास दूसरे राज्यों के लिए नजीर पेश कर रहा है। यह अधिकारियों की जिम्मेदारी है कि जो योजनाएं पंचायतों के स्तर पर बनाई गई हैं उसे सूचीबद्ध कर प्राथमिकता के मुताबिक धरातल पर उतारें। इससे आगे भी प्रशासनिक कामकाज में सहूलियत होगी। एक झटके में योजना बनाओ अभियान एक वृहद डाटा तैयार करने में मददगार साबित हुआ है जो विविध भौगोलिक पृष्ठभूमि वाले झारखंड के लिए मुश्किल भरा काम था। इस प्रयास ने यह भी प्रमाणित किया है कि सुशासन के लिए दूरदृष्टि अनिवार्य है और कल्याणकारी सत्ता के लिए यह आवश्यक है कि जटिलताएं कम से कम हों और लोगों को सहूलियतें मिलें ताकि उनका जीवनस्तर सरल और बेहतर हो। झारखंड की यह योजना अन्य दूसरे राज्यों ने अपनाई तो इससे राज्य के मान में वृद्धि होगी। कम से कम झारखंड ने इस मामले में एक राह तो अवश्य दिखाई है।

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