Monday, December 23, 2019

राजनीति चमकाने के लिए उत्तर भारतीयों पर हमला करवाते हैं राज ठाकरे

महाराष्ट्र के सांगली से मनसे के कार्यकर्ताओं का एक वीडियो सामने आया है, जिसमें वो उत्तर भारतीयों की सड़क पर दौड़ा-दौड़ाकर पिटाई कर रहे हैं। बताया जा रहा है कि इन दिनों राज ठाकरे की पार्टी मनसे ने 'लाठी चलाओ भैय्या हटाओ’ नाम से पर-प्रांतीयों को हटाने की एक मुहिम शुरू की है, जिसके तहत पार्टी के कार्यकर्ता लाठी डंडे से लैस होकर समूह में निकल रहे हैं और उन्हें सडक पर जहां भी उत्तर भारत के लोग दिखाई दे रहे हैं उनकी बेरहमी से डंडों और लात–घूसों से पिटाई करना शुरू कर देते हैं। वीडियो देखने के बाद मन में यह सवाल उठता है कि महाराष्ट्र में अपनी राजनैतिक रोटियां सेंकने की कोशिश में जुटे राज ठाकरे मुंह के बल गिरने के बाद भी आखिर इस तरह की घृणा फैलाने की राजनीति से बाज क्यों नहीं आ रहे।
 मनसे की क्षेत्रीयतावाद और प्रांतीयतावाद की संकीर्ण राजनीति को मराठी जनता पहले ही नकार चुकी है। एक राजनीतिक दल के रूप मनसे की नीतियां खारिज हो चुकी हैं, लेकिन इसके बाद भी राज ठाकरे हमेशा राष्ट्रीय भावनाओं को आहत करने वाली गतिविधियों के केंद्र में बने रहना पसंद करते हैं। उन्हें लगता है कि अराजकता को आधार बनाकर ही अपना राजनीतिक मकसद पूरा कर सकते हैं। हमारे देश का संविधान किसी भी नागरिक को देश में कहीं भी बसने और रोजगार करने का अधिकार प्रदान करता है, लेकिन राज ठाकरे जैसे लोग संविधान की भी परवाह नहीं करते। उनकी मंशा सदैव यही रहती है कि मराठी मानुष की बात कर किस तरह से मराठियों में उत्तर भारतीय संस्कृति से विद्वेष की प्रवृत्ति पैदा की जाए।
 देखा जाए तो इस तरह का कोई भी प्रयत्न सांझी संस्कृ्ति की विरासत और सामाजिक समरसता के लिए काफी खतरनाक हो सकता है। लोकतंत्र में चाहे वह राजनीतिक दल हों या कोई व्यक्ति सभी को आपनी मांगों के लिए शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन करने और धरने पर बैठने का अधिकार है, लेकिन जब कोई प्रदर्शन और धरना हिंसक रूप ले और आराजक हो जाए तो इसे लोकतंत्र व संविधान पर एक तरह का प्रहार ही माना जाएगा। 
यह पहला मौका नहीं है जब मनसे ने उत्तर भारतीयों को निशाना बनाया है। एक दशक से वह और उनकी पार्टी उत्तर भारतीयों समेत अन्य पर-प्रांतीय लोगों के खिलाफ हमलावर हैं। यह हैरानी की बात है कि कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में भी उनकी पार्टी के लोग नफरत की राजनीति करते थे, क्षेत्रवाद को बढावा देते थे और जब चाहे आंदोलन के नाम पर उत्तर भारतीयों पीटते थे। महाराष्ट्र में अब भाजपा की सरकार है और राज ठाकरे राजनीतिक रूप से हासिये पर भी हैं, लेकिन उनके तेवरों में कोई कमी नहीं आई है, क्योंकि वह और उनकी पार्टी शासन और प्रशासन से ज्यादा ताकतवर हैं।दरअसल सरकार की ओर से उनके खिलाफ कोई कार्रवाई न किए जाने के कारण ही उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ा हुआ है और वे जब चाहते हैं उत्तर भारत के लोगों के साथ आंदोलन के नाम पर मारपीट करने लगते हैं। जाहिर है कि जब तक इस तरह के मामलों को लेकर सरकार और प्रशासन का रवैया उदासीन रहेगा, उत्तर भारतीयों के साथ मारपीट की घटनाओं की पुनरावृत्ति होती रहेगी।
 इस संबंध में महाराष्ट्र की सरकारें किस कदर उदासीन रही हैं इसका अंदाजा इसी बात से हो जाता है कि वर्ष 2008 में उत्तर भारतीयों पर हो रहे हमलों के मद्देनज़र कोई कार्रवाई न होने पर सर्वोच्च न्यायालय को खुद इसका संज्ञान लेकर महाराष्ट्र सरकार को नोटिस जारी करना पड़ा था। कुछ दिनों तक इसका असर भी देखने को मिला। राज ठाकरे उत्तर भारतीयों के खिलाफ नफरत फैलाने वाले बयानों से दूर रहे, लेकिन जैसे ही मामला ठंडा पड़ा एक बार ‍फिर वह पुरानी राह पर चल पड़े हैं। उन्हें लगता है कि क्षेत्रीयता को बढ़ावा देकर वे अपना खोया राजनीतिक जनाधार दोबारा हासिल कर सकते हैं। यह उनकी हताशा को ही दर्शाता है कि इन दिनों वे महाराष्ट्र की हर समस्या और हादसे के लिए उत्तर भारतीयों को जिम्मेदार बता रहे हैं। हद तो तब हो गई जब उन्होंने गत दिवस मुंबई के एलफिंस्टन रेलवे स्टेशन पर फुटओवर ब्रिज हादसे के लिए भी दूसरे राज्यों से आए लोगों को उत्तरदायी बताकर राजनीति करने की कोशिश की। उनका कहना है कि बाहरी लोगों की वजह से मुंबई में भीड़ बढ़ी और जब दूसरे राज्यों से लोग मुंबई आते रहेंगे, हादसे होते रहेंगे। राज ठाकरे के मुताबिक दूसरे राज्यों के लोगों को मुंबई नहीं आना चाहिए। क्या मुंबई भारत का हिस्सा नहीं, राज ठाकरे की जागीर है। महाराष्ट्र के नवनिर्माण में उत्तर भारतीयों का भी खून पसीना लगा हुआ है, इससे कोई इंकार नहीं कर सकता।
यदि मराठियों के लिए दूसरे राज्य के नेता भी उनकी ही भाषा बोलने लगें तो स्थिति काफी भयावह हो जाएगी। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि राज ठाकरे की इस तरह की राजनीति पर अंकुश लगाने के लिए राजनीतिक, समाजिक और सरकारी स्तर पर कोई कदम नहीं उठाया जा रहा है। इसके दीर्घकालिक नतीजे काफी खतरनाक हो सकते हैं। सही तो यह होगा कि राज ठाकरे और उनकी पार्टी इस बात को समझे कि ऐसी राजनीति से न तो उनका भला होने वाला है और न ही महाराष्ट्र का। सरकार और प्रशासन को भी चाहिए कि वह उत्तर भारतीयों के खिलाफ की जा रही किसी भी तरह की हिंसा के खिलाफ कड़ाई से निपटे। देश को तोड़ने की राजनीति का कोई भी समर्थन घातक ही साबित होगा।

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